गंधोदक का क्या अर्थ है? गंधोदक का महत्त्वा गन्धोदक और भावना गन्धोदक एक विवेचन गन्द्योक मन्त्रा जिन पूजा एवं गंधोदक गंदोदक की महिमा : मुनि सुधा सागर जी मन्दिर जाने की विधि
प्र . १ गंधोदक का अर्थ क्या हैं ?
उत्तर गंधोदक दो शब्दों से मिलकर बना है - गंध - उदक - गंधोदक ।
गंध का अर्थ है - सुगंधित और उदक का अर्थ है - जल ।
अर्थात् सुगंधित जल गंधोदक कहलाता है । और श्रीतीर्थंकर के चौंतिस अतिशयों में सुगंधित शरीर होना भी एक अतिशय है । जो जल तीर्थंकर के स्पर्श से या स्नान से सुगंधित हो जाता है वह गंधोदक कहलाता है ।
प्र . २ गंधोदक कहाँ - कहाँ लगाना चाहिए ?
उत्तर गंधोदक शरीर के उत्तमांग अर्थात् प्रथमतः ललाट पर ही लगाना चाहिय । । किन्हीं आचार्यों के अनुसार चक्षु के ऊपर भी लगा सकते हैं । इन अंगों के अलावा अन्य किसी भी अंग पर गंधोदक नहीं लगाना चाहिये ।
प्र . २ गंधोदक किस भावना से लगाना चाहिए ?
उत्तर १ . सिद्ध क्षेत्र में मेरा गमन हो इस भावना से मस्तिष्क पर गंधोदक लगाया जाता है , या हे भगवन् ! मेरा माथा हमेशा आपके सामने झुका रहे ।
२ . दृष्टि एवं ज्ञान की विशुद्धि के लिए अर्थात् ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय कर्मों के उपशम के लिए दोनों नेत्रों के ऊपरी भाग पर गंधोदक लगाया जाता है । या मेरे ज्ञान चक्षु सदा खुले रहें , ताकि मेरी आँखे आपकी वीतरागी मुद्रा को अधिक समय तक निहार सकें ।
प्र . ४ गंधोदक लगाते समय कौन सा श्लोक बोलना चाहिए ?
उत्तर श्लोक
निर्मलं निर्मली - करणं , पवित्रं पाप - नाशनम् ।
जिन - गन्धोदकं - वन्दे , अष्ट - कर्म - विनाशनं । ।
अथवा
निर्मल से निर्मल अति , श्री जिन का अभिषेक ।
रोग हरे सब सुख करे , काटे कर्म अशेष । । .
पण गंधोदक जिनराज का , गुण से भरा अनेक ।
जो इसका सेवन करे , दुख रहे ना एक ॥
प . ५ गंधोदक की महिमा क्या है ?
उत्तर जिनेन्द्र देव के अभिषेक का गंधोदक कीर्ति , कल्याण , महाबल , निर्दोष , दीर्घायु , नित्य सुख को देने वाला है । चक्रवर्ती की संपत्ति का कारण भी है । यह विश्व की आधि - व्याधि समूह का हर्ता , विष एवं ज्वरों का विनाशक और मोक्षलक्ष्मी प्रदाता है । संपूर्ण कर्मों का हरण करने वाला और संसार में उत्तम है । द्रव्य गुण पर्याय को तथा मन वचन काय को शुद्ध करने वाला है । गंधोदक को पी सकते हैं या नहीं ? नहीं । गंधोदक को कभी नहीं पीना चहिए । ये कोई अन्य मतों जैसा चरणामृत नहीं है कि सभी , मंदिरों में पीने लगें एवं जिस गंधोदक को इतना महान बताया है , जिसकी हम वंदना करते हैं , भूमि पर गंधोदक गिर जाय तो नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ते हैं और उसको मस्तक पर लगाते हैं । उसे पीने में तो गंधोदक का अविनय व अविवेक पूर्ण क्रिया है क्योंकि गंधोदक पीने से पेट में जाकर वह मल मूत्र में परिवर्तित हो जाता है , जिससे पाप का ही आस्रव होता है । गंधोदक तो स्पर्श मात्र से ही पापों का नाश करता है इसलिए पीने की तो आवश्यकता ही नहीं है ।
प्र . ७ गंधोदक वंदनीयक्यों ?
उत्तर जिनबिम्ब प्रतिष्ठा की विधि में पंचकल्याणक के माध्यम से तप एवं ज्ञान कल्याणक में संस्कार व अंगन्यास विधि में प्रतिमा के ऊपर मंत्रों का अरोपण मुनिराजों के द्वारा किया जाता है । फिर उस प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा एवं सर्यमंत्र के संस्कार देकर उसे पूज्य बनाया जाता है । अभिषेक की धारा से जो जल प्रतिमा पर गिरता है तो उन मंत्रों एवं अभिषेक के समय उच्चारित मंत्रों की शक्ति का प्रभाव जल में आ जाता है जिससे वह वंदनीय एवं चमत्कारित हो जाता है ।
प्र . ८ गंधोदक किस प्रकार लेना चाहिए ?
उत्तर गंधोदक से पूर्व जल से हाथ धोकर विनयपूर्वक गंधोदक की वंदना करके अपने दाहिने हाथ की मध्यमा और अनामिका अंगुलियों से गंधोदक लेना चाहिए । एक ही बार में इतना गंधोदक ले लें ताकि बार - बार उंगली न डालना पड़े । यदि चम्मच हो तो चम्मच से ही गंधोदक लें । लेकिन जमीन पर नहीं गिरना चाहिए ।