Jain Mahapurus - जैन महापुरुष


जैन महापुरुष 
महापुरुष : - जो पुरुष वासनाओं , विकारों , कषायों आदि के दास न बनकर आत्मावलंबी हो अपने य धर्म को उज्जवल बनाते हुए , आत्मविकास के क्षेत्र में वर्धमान होते हैं . उन मनस्वी व्यक्तियों को महापुरुष कहते हैं ।
नाम : - 24 कुलकर , 24 तीर्थकर , 24 - 24 तीर्थंकर के माता - पिता . 12 चक्रवर्ती , 9 बलदेव , 9 वासदेव ( नारायण ) , 9 प्रतिवासुदेव ( प्रतिनारायण ) , 9 नारद , 11 रुद्र और 24 कामदेव । ये सब मिलाकर 169 महापुरुष होते इनमें से तीर्थकर , चक्रवर्ती , बलदेव , वासुदेव ( नारायण ) तथा प्रतिवासुदेव ( प्रतिनारायण ) मिलकर 63 शलाका पुरुष कहलाते हैं ।
1 . कुलकर : - वे कुशल मनीषी , जो कर्मभूमि के प्रारम्भ में होते हैं , मानव समूह को कुल के आधार पर व्यवस्थित कर मानव सभ्यता के सूत्रधार बनते हैं , वे कुलकर कहलाते हैं । ये मानव समाज को जीने की कला सिखाते हैं , विवेक - विचार की शिक्षा देते हैं । जैन परम्परा में कुलकरों का वही सम्मान है , जो वैदिक परम्परा में मनुओं का है ।
2 . तीर्थकर : - जो धर्म परम्परा में आयी मलिनता और विकृतियों का उन्मूलन कर धर्म के मूल स्वरूप को । पुनः स्थापित करते हैं , ऐसे ही जगत् उद्धारक तीर्थंकर कहलाते हैं । ये समस्त विकारों पर विजय पाकर केवलज्ञान को प्राप्त कर निर्वाण के अधिकारी बनते हैं और मानव जाति को दिव्यध्वनि के द्वारा मोक्ष का मार्ग बताकर उस पर अग्रसर होने की प्रेरणा प्रदान करते हैं ।
3 . चक्रवर्ती : - जो छह खण्ड के अधिपति होते हैं , जिनका समस्त भूमंडल पर एक छत्र राज्य होता है , पृथ्वी तल के समस्त मनुष्यों में श्रेष्ठ वैभव और भोग के स्वामी होने के कारण इन्हें नरेन्द्र भी कहते हैं । चक्रवर्ती के पास वैभव अतुलनीय होता है । वह चौदह रत्नों के , 9 निधियों के , 7 प्रकार की सेना के पृथक् विक्रिया के तथा 32000 हजार मुकुटबद्ध राजाओं के स्वामी होते हैं । इनकी पटरानी सहित 96000 रानियाँ होती हैं । और 3 करोड़ 50 हजार परिवारिकजन होते हैं ।
4 . बलदेव : - ये नारायण के भ्राता होते हैं और उनसे प्रगाढ़ स्नेह रखते हैं , ये अतुल पराक्रम के धनी , अतिशय रूपवान और यशस्वी होते हैं । इनकी हजार रानियां होती हैं । तथा ये पाँच रनों के स्वामी होते हैं ।
5 - 6 . वासुदेव ( नारायण ) - प्रतिवासुदेव ( प्रतिनारायण ) : - ये दोनों समकालीन होते हैं । पूर्वभव में निदान सहित तपश्चरण कर स्वर्ग में देव होते हैं और वहाँ से च्यत होकर वासदेव - प्रतिवासुदेव बनते हैं । दोनो ।
अर्धचक्रवर्ती होते हैं । इनकी सोलह - सोलह हजार रानियाँ होती हैं । प्रतिनारायण ( प्रतिवासुदेव ) प्राय : विद्याधर होते हैं और नारायण ( वासुदेव ) भूमिगोचरी । इनका आपस में जन्मजात बैर होता है । इनमें किसी निमित्त से युद्ध होता है , जिसमें नारायण के द्वारा प्रतिनारायण मारा जाता है । ये दोनों निकट भव्य होते हैं , परन्तु अनुबद्ध बैर के कारण नरक में जाते हैं ।
7 . नारद : - ये नारायण - प्रतिनारायण के काल में होते हैं , ये अत्यन्त कौतुहली और कलहप्रिय होते हैं । नारायण और प्रतिनारायण को आपस में लड़ाने में इनकी प्रमुख भूमिका रहती है । ये ब्रह्मचारी होते हैं और इन्हें राजर्षि का सम्मान प्राप्त होता है । ये सारे राजभवन में बेरोकटोक आते जाते रहते हैं , ये निकट भव्य होते हैं परन्तु कलहप्रियता के कारण नरक में जाते हैं । _ _
8 . रुद्र : - ये सभी अधर्मपूर्ण व्यापार में संलग्न होकर रौद्रकर्म किया करते हैं , इसलिये रुद्र कहलाते हैं । ये । कुमारावस्था में जिनदीक्षा धारणकर कठोर तपस्या करते हैं । जिसके फलस्वरुप इन्हें अंगों का ज्ञान हो जाता है , किन्तु दशवें विद्यानुवाद पूर्व का अध्ययन करते समय विषयों के आधीन होकर पथभ्रष्ट हो जाते हैं । संयम और सम्यक्त्व से पतित होने के कारण सभी रुद्र नरकगामी ही होते हैं । तिलोयपण्णत्ति के अनुसार रुद्रों एवं नारदों की उत्पत्ति हुण्डावसर्पिणी काल में ही होती है ।
9 . कामदेव : - प्रत्येक कालचक्र के दुषमासुषमा काल में चौवीस कामदेव होते हैं । ये सभी अद्वितीय रूप और लावण्य के धनी होते हैं ।
अभ्यास प्रश्न 
1 . महापुरुष किसे कहते हैं एवं कितने प्रकार के होते हैं ?
2 . सठ शलाका पुरुषों के नाम बताइए ।
3 . चक्रवर्ती और कुलकर के विषय में संक्षेप में बताइए ।
4 . नारद , नारायण और रुद्र किन कारणों से नरक में जाते हैं ?
5. महापुरुषों में कौन नरक , स्वर्ग व मोक्ष जाता है ?




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