छहढाला के प्रश्नोत्तरीजैन महापुरुषराजा श्रीपाल एवं मैना सुन्दरीइष्टोपदेश परीक्षापूजन में अष्ट द्रव्य चढ़ाने का क्रम एवं महत्व
श्रावक के षट् आवश्यक कर्म
दिगम्बर एवं श्वेताम्बर जैन
समवशरणमहावीर भगवान प्रश्नोत्तरी
राजा श्रीपाल एवं मैना सुन्दरी
चम्पापुर के राजा का नाम अरिदमन और रानी का नाम कुन्दप्रभा था । रानी कुन्दप्रभा , कुन्दपुष्प के समान लावण्यमयी , गुण और शील में अद्वितीय थी । रानी कुन्दप्रभा के अत्यन्त धीर - वीर , उदारवेत्ता , दानपरायण , दीनवत्सल , धर्मप्रिय पुत्र रत्न हुआ । जब वह पुत्र एक महीने का हो गया तब एक दिन उसके माता - पिता अत्यन्त उत्साह एवं समारोह के साथ उसे जिनमन्दिर ले गये और देवपूजन की । गुरु उपदेश के पश्चात् निमित्तज्ञानी गुरु के अनुसार उस बालक का नाम श्रीपाल रख दिया । 8 वर्ष के बाद श्रीपाल का मौलि - बन्धन एवं उपनयन संस्कार कर दिया गया अर्थात् यज्ञोपवीत पहनाकर उसे पंचाणुव्रत बतला दिये गये तथा श्रावक के अष्टमूलगुण धारण करा दिये गये , सप्त व्यसनों का भी परित्याग करा दिया गया तथा जब तक पूर्णरूप से विद्याध्ययन न हो जाय , तब तक ब्रह्मचर्य पूर्वक रहना भी समझा दिया गया । निर्दिष्ट मंत्रों के द्वारा जैनविधि के अनुसार हवन - पूजन इत्यादि कराके श्रीपाल पढ़ने चले गये । वहाँ श्रीपाल छन्द , व्याकरण , गणित , सामुद्रिक , रसायन , संगीत , ज्योतिष , धनुर्विद्या , शास्त्रविद्या , जल में तैरना , आयुर्वेद , वाहन संचालन , नृत्य आदि विद्या एवं कलाओं में निपुण हो गये और आगम - अध्यात्म विद्याओं का अध्ययन पूर्ण करने के बाद पुन : चम्पापुर अपने घर वापस आ गये । पिता ने श्रीपाल का अतुल विद्वता , पराक्रम , अद्वितीय न्यायपरायणता एवं सम्पूर्ण गुणों से सम्पन्न होने के कारण राज्यतिलक कर दिया । राज्य संचालन में दत्तचित्त , कामदेव के समान श्रीपाल को एवं अन्य 700 वीरों को अचानक एक साथ महाभयानक कुष्ठ रोग हो गया , जिससे इन लोगों का शरीर गलने लगा एवं खून बहने लगा । इन लोगों की दयनीय दशा को देखकर प्रजाजन अत्यन्त क्षुब्ध एवं दुःखी रहते थे । जब रोग को दुर्गन्ध के कारण वातावरण बिगड़ने लगा , तब वीरदमन चाचा जी के कहने पर श्रीपाल 700 वीरों के साथ नगर से बहुत दूर उद्यान में जाकर निवास करने लगे । मालवा देश में एक उज्जयनी नामक ऐश्वर्यपूर्ण नगरी थी । जिसके राजा का नाम पुहुपाल था । उसकी अनेक रानियाँ थीं । उनमें से पद्मरानी के गर्भ से सुरसुन्दरी एवं मैनासुन्दरी नाम की दो पुत्रियाँ उत्पन्न हुई । उनमें से सुरसुन्दरी रूपवती के साथ - साथ सांसारिक विषय भोगों में आसक्त रहती थी । परन्तु मैनासुन्दरी उत्तम रूपवती , उत्तम गुणवती एवं विवेकशील थी । सुरसुन्दरी ने शैव गुरु से एवं मैनासुन्दरी ने आर्यिका से धार्मिक अध्ययन किया था । पिता के पूछने पर सुरसुन्दरी ने अपनी स्वेच्छानुसार हरिवाहन से विवाह स्वीकार कर लिया , परन्तु मैनासुन्दरी । ने कहा है कि पिता जी , कुलीन एवं शीलवती कन्यायें अपने मुख से किसी अभीष्ट वर की याचना कदापि नहीं करती हैं । मैनासुन्दरी की विद्वत्तापूर्ण वार्ता को सुनकर राजा पुहपाल तिलमिला गये और उन्होंने क्रोध में आकर कोढ़ी राजा । श्रीपाल से विवाह कर दिया । विवाह मण्डप में पति की निन्दा सुनकर मैनासुन्दरी बोली कि आप मेरे हितचिन्तक हैं , आप मेरे पति को महाकुरूप एवं रोग ग्रस्त देख रहे हैं , परन्तु मेरी दृष्टि में तो वे कामदेव के समान सुन्दर हैं । आप लोगों को इस अप्रिय प्रसंग की चर्चा समाप्त कर देनी चाहिए । इसमें पिताजी का कोई दोष नहीं है । बाद में राजा पुहुपाल को अपनी गलती पर पश्चाताप हआ और उन्होंने मैनासुंदरी से क्षमायाचना की ।
राजा श्रीपाल के कुष्ठ राग को दूर करने के लिये मैनासुंदरी ने गुरु के आशीर्वाद एवं विधि के अनुसार अष्टाह्निका पर्व में सिद्धचक्र महामण्डल विधान का आयोजन किया , जिसके प्रभाव से श्रीपाल के साथ 700 वीरों का भी कुष्ठरोग ठीक हो गया । कुछ समय बाद श्रीपाल मैनासुन्दरी के साथ चम्पापुरी वापस आ गये । एक दिन श्रीपाल अपने महल के छत पर बैठे हुये थे । आकाश में बिजली चमकी , जिसे देखकर उन्हें वैराग्य हो गया । वे अपने पुत्र धनपाल को राज्य सौंपकर वन की ओर चले गये । उनके साथ 8000 रानियाँ तथा माता कुन्दप्रभा भी वन को प्रस्थान कर गई । । श्रीपाल ने मुनीश्वर के पास जाकर जिनदीक्षा धारण कर ली । उनके साथ 700 वीरों ने भी दीक्षा ले ली , माता कुन्दप्रभाव अन्य रानियों ने भी आर्यिका के व्रत ग्रहण किये । कठोर तपस्या करते हुए अल्पसमय में ही घातिया कर्मों को नष्टकर केवलज्ञान प्राप्त किया और फिर शेषकर्मों को नष्टकर मोक्षधाम को प्राप्त हुए । इसी प्रकार मैनासुन्दरी तथा माता कुन्दप्रभा ने भी आर्यिका व्रत ग्रहण कर घोर तपश्चरण किया और तप के प्रभाव से स्त्रीलिंग को छेद कर सोलहवें स्वर्ग में देव पद को प्राप्त किया । इसी तरह रयणमंजूषा , गुणमाला आदि अन्य रानियों ने भी अपनी - अपनी तपस्या के अनुसार स्वर्गादि शुभ गति को प्राप्त किया ।
अभ्यास प्रश्न
1 . श्रीपाल एवं मैनासुन्दरी के माता - पिता का नाम बताइए ।2 . श्रीपाल की कुल कितनी रानियाँ थीं ?
3 . श्रीपाल एवं मैनासुन्दरी के जीवन परिचय से क्या शिक्षा मिलती है ?
4 . श्रीपाल कितनी कलाओं में निपुण थे ?
5 . श्रीपाल को कितने वीरों के साथ कुष्ठ रोग हुआ था ?
6 . कुष्ठ रोग से श्रीपाल के शरीर में क्या प्रतिक्रिया हुई ?
7 . श्रीपाल एवं अन्य वीरों का कुष्ठ रोग कैसे शान्त हआ ?