तीर्थंकर नेमिनाथ
जम्बद्वीप सम्बन्धी भरत क्षेत्र के कशार्थ देश में शौर्यपुर । द्वारावती नगरी के हरिवंश शिखामणि राजा । सपटविजय थे , उनकी रानी का नाम शिवादेवी था । महारानी ने श्रावण शुक्ला षष्ठी के दिन चित्रा नक्षत्र में जयन्त । विमानवासी अहमिन्द्र को तीर्थंकर पुत्र के रूप में जन्म दिया । भगवान् नमिनाथ की तीर्थ परम्परा के बाद पाँच लाख पर्व बीत जाने पर भगवान् नेमिनाथ का जन्म हुआ था । भगवान् नेमिनाथ की आयु एक हजार वर्ष थी तथा शरीर 101 धनुष ऊँचा था ।
राजकुमार नेमिनाथ एक बार सत्यभामा के व्यंग्य पर नारायण श्रीकृष्ण की आयुध शाला में पहुँचकर नागशय्या पर चढ़ गये । धनुष की डोरी को भी चढ़ा दिया और दिशाओं के अन्तराल को रोकने वाला शंख फूंक दिया । जिस समय आयुधशाला में यह सब हुआ , उस समय श्रीकृष्ण कुसुमचित्रा नाम की सभाभूमि में विराजमान थे । इस आश्चर्यपूर्ण कार्य को सुनकर उनका मन व्याकुल हो गया । तब अर्द्धचक्री श्रीकृष्ण ने बड़ी सावधानी से विचारकर कुमार नेमिनाथ के विवाह की योजना बनाई और नेमिकुमार का उग्रवंशी राजा उग्रसेन की रानी जयावती की प्रियपुत्री राजुल से सम्बन्ध करा दिया ।
श्रावण मास में यादवों की बारात सज - धजकर द्वारिका से जूनागढ़ पहुँची । उस बारात का वैभव अद्वितीय था । राजकुमारी राजुल वधू के वेश में साक्षात् रति लग रही थी । ।
जैसे ही नेमिकुमार के रथ ने नगरी में प्रवेश किया तभी उनकी दृष्टि एक मैदान के बाड़े में बँधे हुए तृणभक्षी पशुओं पर पड़ी । तब सारथी से कारण पूछने पर उत्तर मिला कि विवाहोत्सव में जो मांसभक्षी म्लेच्छ राजा आये हैं , उनके लिए नाना प्रकार का मांस तैयार करने के लिए पशुओं को बाँधा गया है । यह सुनते ही नेमिकुमार का दया से ओत प्रोत हृदय विवाह के लिए उत्सुक नहीं रहा । मन में सांसारिक सुखों के प्रति वितृष्णा उत्पन्न हो गई और वे राजुल से विवाह न करके विरक्त हो गये ।
तदनन्तर श्रावण शुक्ला षष्ठी के दिन , गिरनार के सहस्राम्र वन में संध्या काल के समय में तीन सौ वर्ष । कुमार काल के बीत जाने पर एक हजार राजाओं के साथ जिनदीक्षा धारण कर ली । राजकुमारी राजुल ने भी विरक्त होकर नेमिनाथ के ही मार्ग पर चलकर आर्यिका दीक्षा धारण कर ली । भगवान् नेमिनाथ की प्रथम पारणा द्वारावती नगरी के राजा वरदत्त ने नवधाभक्ति पूर्वक कराई । छद्मस्थ अवस्था के 56 दिन बीत जाने के बाद रैवतक पर्वत पर महाविष्णु ( बड़े बाँस ) वृक्ष के नीचे ध्यान में लीन हो गये और आश्विन शुक्ला प्रतिपदा के दिन प्रात : काल के समय घातिया कर्मों को क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त कर लिया । भगवान् के समवशरण की रचना हुई जिसमें 18हजार मुनि , 40हजार आर्यिका , 1 लाख श्रावक , 3 लाख श्राविका , असंख्यात देव - देवियाँ तथा संख्यात तिर्यंच थे । इस प्रकार भव्य जीवों को धर्मोपदेश देते हुए भगवान् ने 699 वर्ष 9 माह चार दिन विहार किया । तत्पश्चात् 533 मुनियों के साथ 1 मास का योग निरोधकर गिरनार पर्वत से ही आषाढ़ शुक्ला सप्तमी के दिन रात्रि के आरम्भिक काल में ही सम्पूर्ण कर्मों को नष्ट कर सिद्धपद को प्राप्त कर लिया ।
अभ्यास प्रश्न
1 . तीर्थकर नेमिनाथ का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।
2 . बालक नेमिनाथ के माता पिता का क्या नाम था ?
3 . श्री कृष्ण ने नेमिनाथ के विवाह की योजना क्यों बनाई ?
4 . राजा नेमिनाथ के वैराग्य का क्या कारण था ?
5 . समवशरण में किसकी कितनी संख्या थी ?