श्री आदिनाथ जी - aadinath chalisa

 चालीसा : भगवान् आदिनाथ (चाँदखेड़ी)


(छंद: दोहा)

शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूँ प्रणाम ।

उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ।।

सर्व साधु और सरस्वती जिनमंदिर सुखकार ।

आदिनाथ भगवान् को मन-मंदिर में धार ।।


(चौपार्इ छन्द)

जै जै आदिनाथ जिन स्वामी, तीन-काल तिहुँ-जग में नामी ।

वेष-दिगम्बर धार रहे हो, कर्मों को तुम मार रहे हो ।।१।।


हो सर्वज्ञ बात सब जानो; सारी दुनियाँ को पहचानो ।

नगर अयोध्या जो कहलाये, राजा नाभिराज बतलाये ।।२।।


मरुदेवी माता के उदर से, चैत-वदी-नवमी को जन्मे ।

तुमने जग को ज्ञान सिखाया, कर्मभूमि का बीज उपाया ।।३।।


कल्पवृक्ष जब लगे बिछरने, जनता आर्इ दु:खड़ा कहने ।

सब का संशय तभी भगाया, सूर्य-चंद्र का ज्ञान कराया ।।४।।


खेती करना भी सिखलाया, न्याय-दंड आदिक समझाया ।

तुमने राज किया नीति का, सबक आपसे जग ने सीखा ।।५।।


पुत्र आपका भरत बताया, चक्रवर्ती जग में कहलाया ।

बाहुबलि जो पुत्र तुम्हारे, भरत से पहले मोक्ष सिधारे ।।६।।


सुता आपकी दो बतलार्इ, ‘ब्राह्मी’ और ‘सुन्दरी’ कहलार्इ ।

उनको भी विद्या सिखलार्इ, अक्षर और गिनती बतलार्इ ।।७।।


एक दिन राजसभा के अंदर, एक अप्सरा नाच रही थी ।

आयु उसकी बची अल्प थी, इसीलिए आगे नहिं नाच सकी थी ।।८।।


विलय हो गया उसका सत्वर, झट आया वैराग्य उमड़कर ।

बेटों को झट पास बुलाया, राजपाट सब में बँटवाया ।।९।।


छोड़ सभी झंझट संसारी, वन जाने की करी तैयारी ।

राजा हजारों साथ सिधाए, राजपाट-तज वन को धाये ।।१०।।


लेकिन जब तुमने तप कीना, सबने अपना रस्ता लीना ।

वेष-दिगम्बर तजकर सबने, छाल आदि के कपड़े पहने ।।११।।


भूख-प्यास से जब घबराये, फल आदिक खा भूख मिटाये ।

तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाये, जो अब दुनियाँ में दिखलाये ।।१२।।


छै: महीने तक ध्यान लगाये, फिर भोजन करने को धाये ।

भोजन-विधि जाने नहिं कोय, कैसे प्रभु का भोजन होय ।।१३।।


इसी तरह बस चलते चलते, छै: महीने भोजन-बिन बीते ।

नगर हस्तिनापुर में आये, राजा सोम श्रेयांस बताए ।।१४।।


याद तभी पिछला-भव आया, तुमको फौरन ही पड़घाया ।

रस-गन्ने का तुमने पाया, दुनिया को उपदेश सुनाया ।।१५।।


तप कर केवलज्ञान उपाया, मोक्ष गए सब जग हर्षाया ।

अतिशययुक्त तुम्हारा मंदिर, चाँदखेड़ी भँवरे के अंदर ।।१६।।


उसका यह अतिशय बतलाया, कष्ट-क्लेश का होय सफाया ।

मानतुंग पर दया दिखार्इ, जंजीरें सब काट गिरार्इ ।।१७।।


राजसभा में मान बढ़ाया, जैनधर्म जग में फैलाया ।

मुझ पर भी महिमा दिखलाओ, कष्ट भक्त का दूर भगाओ ।।१८।।


(सोरठा)

पाठ करे चालीस दिन, नित चालीस ही बार ।

चाँदखेड़ी में आय के, खेवे धूप अपार ।।

जन्म दरिद्री होय जो, होय कुबेर-समान ।

नाम-वंश जग में चले, जिनके नहीं संतान ।।

01