जिनवर-आनन-भान निहारत

 जिनवर-आनन-भान निहारत

तर्जदेखो जी आदीश्‍वर...

 

जिनवर-आनन-भान निहारतभ्रमतम घान नसाया है ।।

 

वचन-किरन-प्रसरनतैं भविजनमनसरोज सरसाया है ।

भवदुखकारन सुखविसतारनकुपथ सुपथ दरसाया है ।१।

 

विनसाई कज जलसरसाईनिशिचर समर दुराया है ।

तस्कर प्रबल कषाय पलायेजिन धनबोध चुराया है ।२।

 

लखियत उडुग न कुभाव कहूँ अबमोह उलूक लजाया है ।

हँस कोक को शोक नश्यो निजपरनतिचकवी पाया है ।३।

 

कर्मबंध-कजकोप बंधे चिरभवि-अलि मुंचन पाया है ।

दौल उजास निजातम अनुभव,उर जग अन्तर छाया है ।४।

 

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