चन्द्रानन जिन चन्द्रनाथ के

 चन्द्रानन जिन चन्द्रनाथ केचरन चतुर-चित ध्यावतु हैं

कर्म-चक्र-चकचूर चिदातमचिनमूरत पद पावतु हैं ॥

 

हाहा-हूहू-नारद-तुंबरजासु अमल जस गावतु हैं

पद्मा सची शिवा श्यामादिककरधर बीन बजावतु हैं ॥

 

बिन इच्छा उपदेश माहिं हितअहित जगत दरसावतु हैं

जा पदतट सुर नर मुनि घट चिरविकट विमोह नशावतु हैं॥

 

जाकी चन्द्र बरन तनदुतिसोंकोटिक सूर छिपावतु हैं

आतमजोत उदोतमाहिं सबज्ञेय अनंत दिपावतु हैं ॥

 

नित्य-उदय अकलंक अछीन सुमुनि-उडु-चित्त रमावतु हैं

जाकी ज्ञानचन्द्रिका लोका-लोक माहिं न समावतु हैं ॥

 

साम्यसिंधु-वर्द्धन जगनंदनको शिर हरिगन नावतु हैं

संशय विभ्रम मोह `दौलकेहर जो जगभरमावतु हैं ॥

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