चाह मुझे है दर्शन की

 चाह मुझे है दर्शन की

तर्ज प्रभु दर्शन से जीवन की....

 

चाह मुझे है दर्शन कीप्रभु के चरण स्पर्शन की ।।

 

वीतराग-छवि प्यारी हैजगजन को मनहारी है ।

मूरत मेरे भगवन कीवीर के चरण स्पर्शन की ।।

 

कुछ भी नहीं श्रृंगार कियेहाथ नहीं हथियार लिये ।

फौज भगाई कर्मन कीप्रभु के चरण स्पर्शन की ।।

 

समता पाठ पढ़ाती हैध्यान की याद दिलाती है ।

नासादृष्टि लखो इनकीप्रभु के चरण स्पर्शन की ।।

 

हाथ पे हाथ धरे ऐसेकरना कुछ न रहा जैसे ।

देख दशा पद्मासन कीवीर के चरण स्पर्शन की ।।

 

जो शिव-आनन्द चाहो तुमइन-सा ध्यान लगाओ तुम ।

विपत हरे भव-भटकन की,प्रभु के चरण स्पर्शन की ||

 

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