पारस प्यारा लागो, चँवलेश्वर प्यारा लागो ।
थांकी बांकडली झाड्यां में, गैलो भूल्यो जी म्हारा पारसजी,
म्हैं रस्तो कियां पावांला॥ पारस प्यारा … ॥
अब डर लागे छै म्हाने, हर बार पुकारां थांने ।
थांका पर्वत रा जंगल में, सिंह धडूके हो चँवलेश्वर जी,
म्हैं रस्तो कियां पावांला॥ पारस प्यारा … ॥
थे राग द्वेष न त्यागा, म्है आया भाग्या भाग्या ।
थांका पर्वत री भाटा की, ठोकर लागी हो चँवलेश्वर जी,
म्हैं रस्तो कियां पावांला॥ पारस प्यारा … ॥
म्हे अजमेर शहर से चाल्या, थांका ऊंचा देख्या माला ।
म्हाने पेड्या पेड्या चढवो, प्यारो लागे हो चँवलेश्वर जी,
म्हैं रस्तो कियां पावांला॥ पारस प्यारा … ॥
थांका विशाल दर्शन पाया, जद तन मन से हरषाया ।
थांकी छतरी की तो शोभा, न्यारी लागे हो चँवलेश्वर जी,
म्हैं रस्तो कियां पावांला॥ पारस प्यारा … ॥
थे झूंठ बोलबो छोडो, और धर्म सूं नातो जोडो ।
म्हारी बांकडली झाड्यां में, गैलो पावो जी म्हारा सेवक जी,
थे सीधो रस्तो पावोला॥ पारस प्यारा … ॥