सिद्ध चक्र स्तुति - sidhh chakra stuti

 श्री सिद्ध चक्र का पाठ, करो दिन आठ ।


ठाठ से प्रानी, फल पायो मैना रानी ।।


 


मैना सुंदरी एक नारी थी, कौड़ी पति लाख दुखियारी थी ।


नहीं पड़े चैन दिन रैन व्यथित अकुलानी।। फल पायो००


 


जो पति का कुष्ठ मिटाउंगी, तो उभयलोक सुख पाउंगी ।


नहीं अजा गल स्तन वत्त, निष्फल जिंदगानी । फल पायो ००


 


एक दिन गयी जिं मंदिर में, दर्शन कर अति हरषी उर में ।


फिर लाखे साधू निर्ग्रन्थ दिगंबर ज्ञानी ।। फल००


 


बैठी कर मुनि को नमस्कार, निज निंदा करती बार बार ,


भर अश्रु नयन कही मुनि सों, दुखद कहानी ।। फल ००


 


बोले मुनि पुत्री! धैर्य धरो, श्री सिद्धचक्र का पाठ करो ।


नहीं रहे कुष्ठ की तन में नाम निशानी ।। फल००


 


सुन साधू वचन हरषी मैना, नहीं होय झूठ मुनि की बैना ।


करके श्रद्धा श्री सिद्धचक्र की ठानी।। फल००


 


जब पर्व अढाई आया था, उत्सव युक्त पाठ कराया था ।


सब के तन छिड़का यन्त्र न्वहन का पानी ।। फल००


 


गंधोदक छिड़क वसु दिन में, नहीं रहा कुष्ठ किंचित तन में ।


भई सात शतक की काय स्वर्ण समानी ।। फल००


भाव भोग भोगी योगीश भये, श्रीपाल कर्म हनी मोक्ष गए ।


दूजे भव मैना पावें शिव रजधानी ।। फल००


 


जो पाठ करे मन वच तन से, वे छुट जाए भव बंधन से।


मक्खन मत करो विकल्प कहे जिनवाणी । फल पायो००


श्री सिद्ध चक्र का पाठ, करो दिन आठ ।


ठाठ से प्रानी, फल पायो मैना रानी ।।

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